एक लड़की है
पास ही, मगर दूर -सी
उसे जानता हूँ, नहीं भी
सुघड़ ,मगर मज़दूर-सी
उसे मानता हूँ, नहीं भी
सरल ,मगर मग़रूर - सी
उसे देखता हूँ ,नहीं भी
सरस ,मगर बीहड़-सी
उसे सींचता हूँ ,नहीं भी
देह, मगर विवेक -सी
उसे मांजता हूँ ,नहीं भी
.............
वो लड़की नहीं
उधेड़बुन है
पास ही, मगर दूर -सी
उसे जानता हूँ, नहीं भी
सुघड़ ,मगर मज़दूर-सी
उसे मानता हूँ, नहीं भी
सरल ,मगर मग़रूर - सी
उसे देखता हूँ ,नहीं भी
सरस ,मगर बीहड़-सी
उसे सींचता हूँ ,नहीं भी
देह, मगर विवेक -सी
उसे मांजता हूँ ,नहीं भी
.............
वो लड़की नहीं
उधेड़बुन है
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