Saturday, October 10, 2009

मांडू













ख़ुरसानी और चिनार में फर्क नहीं कर पाता हूँ



मांडू आता हूँ तो काश्मीर भूल जाता हूँ


झरते हैं झरने, जगा-जगाह बच्चों की तराह


रूपमति मंडप में गुलमर्ग-सा मजा पाता हूँ


मैं खड़ा हूँ महल में गो कि हाउस-बोट कोई राजसी


जहाज महल में सौ हा़उस-बोट की मौज पाता हूँ


काश्मीर में थे केसर, चीड़, कहवा और लालमुँहे बच्चे


यहाँ की ख़ुरसानी, सीताफल और दाल-पानिए में भूल जाता हूँ


बन रहा है हिमालय, काश्मीर भी बनता बिगड़ता है


मालवा के पठार में मांडू को भी बनता-मिटता पाता हूँ



ख़ुरसानी- मांडू में ही पाई जाने वाली इमली

Sunday, October 4, 2009

शायर की महबूबा


तुम्हारे रंजो-गम को गर कतरा भर भी कम कर पाया



मैं समझूँगा कामयाब हुई कोशिशें, जीवन सफल बनाया






जानता हूँ तुम्हारे तनाव दुनियावी नहीं रूहानी हैं


कुदरत ने कुछ सोचकर ही तुम्हें शायर की महबूब बनाया






चेहरे पे तुम्हारे शोख हँसी न रहे, न सही


भरी-भरी गंभीरता ही तुम्हारा गहना है, जिसने तुम्हें सजाया है






बहुतों को मिलती है मोहब्बत, भोली और मासूम


मैंने दिल दिया फ़िलासफ़र को, राम तेरी माया






तुम्हारी हँसी सच्ची है, सच्चे हैं आँसू भी


सात परतों में लिपटी है तुम्हारी तिलस्मी काया






रहस्य का रंग होता है गहरा, अंतरिक्ष की तरह


खुदा ने भी सोचकर डाला है तुम पर साँवला साया






मेरा काव्य संग्रह

मेरा काव्य संग्रह
www.blogvani.com

Blog Archive

Text selection Lock by Hindi Blog Tips

about me

My photo
मुझे फूलों से प्यार है, तितलियों, रंगों, हरियाली और इन शॉर्ट उस सब से प्यार है जिसे हम प्रकृति कहते हैं।