Friday, May 28, 2010

सुंदरता को अपूर्ण ही होना चाहिए


रिमझिम झरती बूँदों को
बेधकर जब निकली
रवि-रश्मि
तो नीले आकाश पर
तन गया
इकहरा इंद्रधनु
रे धनु
तू भी है अभागा
सचमुच मेरी तरह
जो सुंदर है किंतु
संपूर्ण नहीं
अपूर्ण है
क्योंकि तीर नहीं
सुंदर है
क्योंकि तीर नहीं
तीर का होना
संधान का होना है
और संधान
नष्ट करता है
मिटाता है, गिराता है
ध्वंस करता है
लगा सचमुच सुंदरता को
अपूर्ण ही होना चाहिए

Thursday, May 27, 2010

ताकि तराश सकूँ....


लिखता रहा
ताकि मर ना जाए
उन क्षणों की अनुभूतियाँ
जिन्हें मैंने जिया
जिंदा रहे वह मधुरस
और हलाहल
अपनी खुशी से
वक्त के हाथों
जिसे मैंने पिया
लिखता रहा
ताकि बने रहे
उन ज़ख़्मों के निशां
जिन्हें अपने ही हाथों
अकेले में मैंने सिया
लिखता रहा
ताकि फूटती रहे कोंपलें
[दर्द के दरख़्त से
जिस्म और रूह में
अपने ही हाथों
जिसे मैंने बोया
लिखता रहा
ताकि तराश सकूँ
अपने ही बुत को
मेरे ख़्वाबों ने
मेरी आँखों में
जिसे हर रात संजोया
लिखता रहा.....लिखता रहा....

Wednesday, May 26, 2010

पुरवाई बहार की !


घूँट-- दर घूँट पीकर दर्द तेरे इंतजार का
रफ्ता-रफ्ता देख यूँ ही उम्र गुज़ार दी

खुद की हार का ग़म, या तेरी जीत की खुशी
हर शाम जिंदगी की मगर, यूँ ही निसार की

कोई आकर पूछेगा तो इतना ही कहेंगे नीरव
अबके ये बाज़ी बिना खेले ही हार दी

कोई एक ज़ख्म हो तो बताए दिल पर
नश्तर को भी अब तो, मिलती है लाचारगी

कोई सहेगा क्या हम- सा दर्द ए दोस्त
टूटे जब भी ऐसे हँसे गोया खुशी इज़हार की

वो तेज झोंके -सा आकर तोड़ गया, आखिरी पत्ता
दरख़्त का, हम ये समझे कि चली पुरवाई बहार की

Tuesday, May 25, 2010

कितनी क्षुद्र लेखनी मेरी


गिनती के गीत जुटा पाया
अपनी आँहों को उर में भर
तप कर, जलकर जीवन भर
संसृति सागर से गगरी में
दो-चार बूँद ही भर पाया
गिनती के गीत जुटा पाया
अलबेली मंजिल के दुष्कर पथ पर
कुछ फूल खिले कुछ काँटे थे
इनकी ही गंध चुभन को
अपनी साँसों में भर लाया
गिनती के गीत सुना पाया
मनचाहा यदि लगे तुम्हें कुछ
बिन पूछे ही ले जाओ
होगा कृतार्थ जीवन मेरा
किंचित भी यदि दे पाया
गिनती के गीत सुना पाया
इन्हें पढ़कर जी भर हँसना
मेरी भावुकता और नादानी पर
कितनी क्षुद्र थी लेखनी मेरी
सार की बात न कह पाया
गिनती के गीत सुना पाया।

Monday, May 24, 2010

कब तक तुझसे फ्लर्ट करूँ














जिंदगी कब तक तुझसे फ्लर्ट करूँ
झूठे वादे करूँ कब तक
कब तक प्यार की कसमें खाऊँ
रस्में दकियानूसी निभाऊँ कब तक
कब तक झूठी बात करूँ
जिंदगी कब तक तुझसे फ्लर्ट करूँ
जानता हूँ तू नहीं महबूबा मेरी
छोड़ कर साथ एक दिन जाएगी
तो फिर आज ही क्यों न कहूँ
लिव मी अलोन, क्यों बोझ सहूँ
जिंदगी कब तक तुझसे फ्लर्ट करूँ
क्यों भला तुझको हँसा कर मैं दर्दों गम उठाऊँ
रूठ जाए तो तुझे मनाऊँ
क्यों नाज़ो-नखरे उठाऊँ
जिंदगी कब तक तुझसे फ्लर्ट करूँ
देख दूर से वो सौत तेरी
मुझे करीब बुला रही है
ढूँढ ले अब तू भी साथी
अलविदा मैं तो चलूँ
जिंदगी कब तक तुझसे फ्लर्ट करूँ

Sunday, May 23, 2010

विलंबित खुशियाँ


क्या इनको लेकर करूँगा,

असमय जो तूने दी सौगातें
क्या इनको लेकर करूँगा।।
जब इनकी कुछ चाह मुझे थी.
जब इनकी परवाह मुझे थी,
उस समय तूने की बेपरवाही अब
क्या इनको लेकर करूँगा।।
खुशियों को गम में बदलकर,
ग़म को भी भोगा तनहा,
अब यदि नीरव नीर बहाएँ,
क्या इनको लेकर करूँगा।।
मेरे नेह का कोमल पौधा,
मुरझाकर जब सूख गया।
अब यदि मधुऋतु आए,
क्या इसको लेकर करूँगा।।
मेरे भावमय छंद सुन,
तू हरदम मुझ पर हँसा,
मैं मरणशय्या पर, तू इनको गाएँ,
क्या सुनकर इनको करूँगा।।
ना अब दे तू मुझे कुछ,
मैं कुछ ना ले सकूँगा,
तनहा, तगं हाथ रखा ताजिंदगी,
अब भी तनहा खाली हाथ ही मरूँगा।।

मेरा काव्य संग्रह

मेरा काव्य संग्रह
www.blogvani.com

Blog Archive

Text selection Lock by Hindi Blog Tips

about me

My photo
मुझे फूलों से प्यार है, तितलियों, रंगों, हरियाली और इन शॉर्ट उस सब से प्यार है जिसे हम प्रकृति कहते हैं।