Saturday, March 12, 2011

सच और सपना...

मैदानों में बैठकर
गर याद करो
गिरती बर्फ को
तो लगता है
एक सपने-सा
............
अविश्वसनीय हो जाता है
भोगा हुआ सच भी
कभी-कभी
घोर संकट में
नास्तिक के राम-नाम जपने-सा

Friday, March 11, 2011

श्वानाली


पांडवों के साथ
युधिष्ठिर के संग
अंतिम शिखर तक
साथ गया था श्वान...
मगर
आया वह सबसे पहले
मनु महाराज के साथ
तभी तो
मनु-आलय
मनाली में
दिख जाती हैं
सर्वत्र
उसी आदि श्वान की
संतान

Wednesday, March 9, 2011

हाय! कहीं ये स्वप्न न बीत जाए

झरनों की कल-कल-सी तुम
बर्फ की तरह झरती तुम्हारी हँसी
चीड़ों से आती गंध-सी सुवास
कहीं तुम्हारा साथ न छूट जाए
हाय! कहीं ये स्वप्न न बीत जाए

दिन-रात कँपकँपाती यह ठंड
गर्म चाय के गुनगुने स्पर्श-सा सुख
तमाम गर्म कपड़े और गर्म टोप
मैदान में जाते ही यह सब न बीत जाए
हाय! कहीं ये स्वप्न न बीत जाए

ऊनी दस्ताने और मफलर ऊनी
कांगड़ी और अलाव की आँच-सी तुम
दूर शिखरों पर जमी बर्फ
सूर्य की किरण से न पिघल जाए
हाय! कहीं ये स्वप्न न बीत जाए

नवविवाहित जोड़ों का हनीमून
बाँहों में बाँहें डाले घूमते युगल
मदहोश कर देने वाला समां
ये मादक माहौल न गुम जाए
हाय! कहीं ये स्वप्न न बीत जाए

कुनमुनाती-सी रजाई से निकलती
बाहर जाने के नाम पर बिसूरती
बाहर निकलते ही बह निकलती
गर्म सोतों-सी यह गर्मी न जम जाए
हाय! कहीं ये स्वप्न न बीत जाए

Tuesday, March 8, 2011

मनाली

पल-पल
बदलता है मौसम जहाँ
मैंने दो दिन में यहाँ
मौसम देखे चार
पहले ठंड-सा लाचार,
फिर बारिश-सा बेज़ार,
 बर्फ-सा खुशगवार
और धूप का बाज़ार



Monday, March 7, 2011

मनाली में धूप


सूर्य को देवता
पहाड़ियों ने माना होगा
सर्वप्रथम-पहली बार
खासकर जहाँ गिरती हो गार
...............................
अंगार को देवता
वे ही तो करेंगे
स्वीकार
...........

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मुझे फूलों से प्यार है, तितलियों, रंगों, हरियाली और इन शॉर्ट उस सब से प्यार है जिसे हम प्रकृति कहते हैं।