Thursday, December 9, 2010

ज़िन्दगी : पाँच कदम

दो कदम तनहा चले
शुरू में
और बाद के दो कदम
भी अकेले
पाँच कदमों की थी जिंदगी
बीच के उस कदम में
एक साए के कदम भी
साथ मेरे चले

Wednesday, December 8, 2010

स्त्री बनाम पेड़

वृक्ष-सी होती है स्त्री
उगती है किसी आँगन
छाया किसी और आँगन देती है
ताड़-सी बढ़ना
फलो-फूलो
ममता भरी छाँह
ये सारे
रूपक, उपमाएँ
किसी और का नहीं
स्मरण कराते हैं स्त्री का ही
औऱ स्त्री भी निभाती है
इन सभी को बखूबी
तभी तो ताड़-सी बढ़ती अपनी बढ़त को
फुनगी कटवाकर
चुपचाप अपनी
तमाम शिखरीय संभावनाओँ को
कटवा कर
आशीर्वाद पाती है
फलो-फूलो
और कभी इच्छा, कभी अनिच्छा
से फूलती है, फलती है
तानों-उलाहनों के पत्थर मारे जाने पर भी
देती है फल मीठे
फूलती है चंदन-सुवासित गंध-सी
जिसकी सुगंध घर-भर अनुभव करता है
धीरे-धीरे अपनी जड़ें
गहरी जमाकर
वह बन जाती है वट (दादी, नानी, अम्माँ)
और देती है ममता भरी छाँह
और फिर अपनी शिराओं को
लटकाकर जमीन पर भेजती हैं
ताकि फूटे फिर नई कोंपलें
और फिर किसी दिन (हाँलाकि यह नहीं है सुखद)
कटवा कर उसे
बनवा ली जाती है कुर्सियाँ, टेबलें और घर के दरवाजे की चौखटें
स्त्री पुनः आँख, गोद, बाँहें बन जाती है....

इन चौखटों, कुर्सियों, टेबलों में

Monday, December 6, 2010

कब तक यह अंतिम लड़ाई

बस यह अंतिम लड़ाई
और सुख की गोद फिर
किंतु इस सुख के पहले
त्रास कितना
कितना दुख
संघर्ष कितना
जरा बताना
जानता हूँ
बस यही अंतिम लड़ाई
और सुख की गोद फिर
फिर जैसा भी बचूँ
मैं तुम्हारा
क्षत सही, विक्षत सही
घायल और प्यासा सही
चाहूँगा बस
एक मीठी-सी चुभन
और थोड़ा स्नेहोपचार
माथे पर गर्म साँसें और
सीने के करीब प्यार
जानता हूँ बस ये अंतिम लड़ाई
और सुख की गोद फिर
किंतु
कब तक यह अंतिम लड़ाई
और सुख की गोद कब

मेरा काव्य संग्रह

मेरा काव्य संग्रह
www.blogvani.com

Blog Archive

Text selection Lock by Hindi Blog Tips

about me

My photo
मुझे फूलों से प्यार है, तितलियों, रंगों, हरियाली और इन शॉर्ट उस सब से प्यार है जिसे हम प्रकृति कहते हैं।