Sunday, April 1, 2012

मालिक-मजदूर


रोज़
सुबह-सुबह
निकलते हैं घर से
मोबाइल कानों में लगाए
बैठते हैं गाड़ी में
दफ्तर जाते हैं
ढ़ेर सारे काम
करते-करवाते हैं
आते हैं देर शाम
थोड़ा टीवी देखकर
खर्राटे भरते हुए
सो जाते हैं
साहब हैं
मजदूर-सा जीवन बिताते हैं
छुट्टी के दिन
घूमते हैं घर के चारों गिर्द
धूल-मिट्टी, कचरा उठाते हैं
देते हैं पौधों को पानी
पानी की तेज बौछार से
गेट-गाड़ी धोते हैं
पसीना बहाते हैं
बन जाते हैं मजदूर
तभी हम घर के मालिक बन पाते हैं


मेरा काव्य संग्रह

मेरा काव्य संग्रह
www.blogvani.com

Blog Archive

Text selection Lock by Hindi Blog Tips

about me

My photo
मुझे फूलों से प्यार है, तितलियों, रंगों, हरियाली और इन शॉर्ट उस सब से प्यार है जिसे हम प्रकृति कहते हैं।