Saturday, May 22, 2010

छोड़ दी मैंने तल्खियाँ


कल शाम एक अजीब सा मंज़र पेश आया
तेरा गुरूर मुझसे मेरा हाल पूछने आया
कितना पहरे बैठाए थे तूने
खुद पर खुद की आरजुओं पर
ये गज़ब कैसे हुआ मगर
तुझ पर तेरा ही न बस चल पाया
कल शाम एक अजीब सा मंज़र पेश आया
तेरा गुरूर मुझसे मेरा हाल पूछने आया
उसके आने की न मुझको खबर हुई
न सुराग, न आहट, न अहसास
मेरे पास आकर जब तक ये न बतलाया
तू जिसके ख़्वाबों में गुम, मैं उसी का साया
कल शाम एक अजीब सा मंज़र पेश आया
तेरा गुरूर मुझसे मेरा हाल पूछने आया
और जब वो मेरा मेहमाँ हुआ
छोड़ दी मैंने तल्खियाँ, पुरानी रंजिश
पहले उसके साथ एक जाम पिया, फिर
फिर से नग़मा भूले प्यार का गाया
कल शाम एक अजीब सा मंज़र पेश आया
तेरा गुरूर मुझसे मेरा हाल पूछने आया

Friday, May 21, 2010

कोई कैसे कहेगा, जिंदा है अब हम







तोड़ बैठे रिश्ता-ए-ज़िदगी ही हम
कोई कैसे कहेगा, ज़िदा है अब हम
अब न उदास धड़कनें हैं न प्यास है
न तुम, न तुम्हारी याद, न खुशी, न ग़मन
मचलते अरमाँ है, न बदहवासी का आलम
अब तो हमारी तनहाई है और है हम
तोड़ बैठे रिश्ता-ए-ज़िदगी ही हम
कोई कैसे कहेगा, ज़िदा है अब हम
न शरबती लब है, न मय छलकाती आँखें
न लहराते गेसू हैं, न खोजती किसी को नज़र
न तुम, न तुम्हारी खुशबू न साँसें है गर्म
अब तो हमारी रूसवाई हैं और हैं हम
तोड़ बैठे रिश्ता-ए-ज़िदगी ही हम
कोई कैसे कहेगा, ज़िदा है अब हम
न उमंग है, न मस्ती, न ज़ुंबिश कहीं
न उदासी, खालीपन नहीं, बेचैनी भी नहीं
अजब सा वीराना है, अजब-सा है मौसम
अब तो अजनबी पन है और हैं हम
तोड़ बैठे रिश्ता-ए-ज़िदगी ही हम
कोई कैसे कहेगा, ज़िदा है अब हम
न रानाईयाँ है तेरे हुस्न की, न नशा
न तेरे जमाल की मदमाती अँगड़ाई है
न रूप की तपती धूप है, न गेसूओं की छाँव नरम
अब तो बेहया जिंदगी है, और हैं हम

Thursday, May 20, 2010

न गेसूओं को तुम हटाओ


यूँ ही छाई रहने दो काली घटाएँ
न गेसूओं को तुम हटाओ
महकने दो साँसों में शबाब
खिलने दो गालों में गुलाब
छलकने दो आँखों से मधु
होंठो से बरसने दो शराब
यूँ ही छाई रहने दो ख़ुमारी
मदहोश हूँ न होश में मुझको लाओ
यूँ ही छाई रहने दो काली घटाएँ
न गेसूओं को तुम हटाओ
टिका रहने दो सर अपनी गोद में
शानों पर रेशमी ज़ुल्फें लहराने दो
मुझको मालूम है हक़ीक़त ख़्वाबों की मगर
यह ख़्वाब जिंदगी भर का हो जाने दो
ख़ामोशी से देखती रहो मुझको बस
हो सके तो मेरी आँखों में बस जाओ
यूँ ही छाई रहने दो काली घटाएँ
न गेसूओं को तुम हटाओ

Wednesday, May 19, 2010

.....और गज़ल कहे कोई

दिल गमों से चूर हो
और गज़ल कहे कोई
दर्द को छिपा ले कलेजे में
और गज़ल कहे कोई
सौ तल्खियाँ हो चेहरे पे
और गज़ल कहे कोई
ख़लिश न मिटती हो दिल की
और गज़ल कहे कोई
लरज़ते ज़ख्म हो दिल के
और गज़ल कहे कोई
टूटते लफ़्ज हो जुबाँ पर
और गज़ल कहे कोई
बहुत कहने को हो अरमाँ
और गज़ल कहे कोई
आखिरी लम्हा हो जिंदगी का
और गज़ल कहे कोई
वसीयत में लिख जाए गज़ल
और गज़ल कहे कोई

Sunday, May 16, 2010

मुझसे सहा जाता नहीं...


बार-बार तुम्हारे नयनों में नीर का छलछलाना
साथी मुझसे सहा जाता नहीं
अंर्तमन में है पीड़ा सभी को
बिन पीड़ा जीवन कोई पाता नहीं
कैसे कहूँ, डाल लो आदत सहने की
आशावादी यह कह पाता नहीं
बार-बार तुम्हारे नयनों में नीर का छलछलाना
साथी मुझसे सहा जाता नहीं
माना तुम्हारी परिभाषा से
यह दुख है सुख का साधन
एक बात तुम भी मानो
यह साधन साध्य तक पहुँचाता नहीं
बार-बार तुम्हारे नयनों में नीर का छलछलाना
साथी मुझसे सहा जाता नहीं
कैसे कहूँ तुम्हारा कल्पना दर्शन
कहीं-न-कहीं दोषयुक्त सखे
स्वयं मेरा अनुभव दर्शन भी तो
मुझको छिद्रांवेषण सिखलाता नहीं
बार-बार तुम्हारे नयनों में नीर का छलछलाना
साथी मुझसे सहा जाता नहीं
प्रकृति के नियमों पर चलो
रोने से पहले जी भर हँस लो
नियति को जो मंजूर वह जाने
कर्म से विमुख भी तो रहा जाता नहीं
बार-बार तुम्हारे नयनों में नीर का छलछलाना
साथी मुझसे सहा जाता नहीं

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मुझे फूलों से प्यार है, तितलियों, रंगों, हरियाली और इन शॉर्ट उस सब से प्यार है जिसे हम प्रकृति कहते हैं।