Saturday, March 5, 2011

देवदार से झरती बर्फ

देवदार की पर्णहीन टहनियों से
बर्फबारी रूकने के बाद
झरती बरसती है
फूलों-सी बर्फ
जैसे गिरते हैं
बसंत से पहले
पत्ते इमली के
झर-झर-झर
थोड़ी-सी धूप
क्षणिक बसंत ले आती है
मनाली के पहाड़ पर......

बीहड़

अदभुत हो तुम भी
गोवा जाकर
हो जाती हो
गोवन
पहाड़ पर पहुँचते ही
हो जाती हो
पहाड़न
मैदानी हो जाती हो
जाकर
मैदान
..............
बीहड़ों में कभी
गई नहीं हो
मन में फिर
कैसे, इतना, कभी-कभी
उग आता है
बीहड़

Thursday, March 3, 2011

बर्फ का सर्द सच

सफेद, खूबसूरत
गंधहीन
रूई-सी
फाहेदार
बर्फ
थोड़ी देर बाद हो जाती है
दलदली
फिसलते हैं
गलते-जमते हैं
जूतों के अंदर
पैर और खून नसों में,
बर्फीला कीचड़ और ठंडा पानी
मिलकर
रचते हैं
सड़कों पर
सर्द बुखार
जिसका असर
रीढ़ से होकर कभी-कभी
मन तक जाता है...

Wednesday, March 2, 2011

रेत बादलों की-16 फरवरी

समुद्र के पास से आते हुए
हट में
जैसे
सब जगह से गिरती-झरती थी रेत
वैसे ही यहाँ
होटल में आने पर
सिर-बदन-कपड़ों से
झरती है बर्फ
रेत बादलों की
..........

Tuesday, March 1, 2011

तन मनाली - मन मणिकर्ण

बर्फ...बर्फ...बर्फ
प्रकृति के साथ हो जाता है
सब कुछ वैसा ही
नाक, मुँह, कान, बाल
ग्लास काँच का, लोहे का पाईप
बिस्तर, यहाँ तक कि गीज़र भी
(कैसे अपने रंग में रंग लेता है मौसम)
.................................................
मुँह से मगर निकलती है
भाप
कहती है फुसफुसाकर
- करती है आश्वस्त – बाहर से हो गए हो
मौसम की तरह सर्द
मगर मन तो मणिकर्ण है
गंधक के उबलते पानी की तरह
सच है
तन मनाली हो गया हो भले
मन तो शाश्वत मणिकर्ण है



Monday, February 28, 2011

मनाली

जैसे आए हों हम किसी पहाड़ की बारात में
बाराती की तरह
उतरते ही स्वागत में
बरसने लगी बर्फ
सफेद, गंधहीन फूलों की तरह

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मुझे फूलों से प्यार है, तितलियों, रंगों, हरियाली और इन शॉर्ट उस सब से प्यार है जिसे हम प्रकृति कहते हैं।