Thursday, November 11, 2010

सोई हुई तुम

ये बोझिल पलकें
थका हुआ जिस्म ये पसीना
जैसे झर जाती है पाँखुरियाँ
जैसे राख हो जाती है धूपबत्ती
देर तक खुशबू देकर
देर तक महक कर
...............................
कोई इसे जगाये क्यूँकर
..................................

Wednesday, November 10, 2010

ब्लैक होल

मेरी आँखें
मेरी साँसें
मेरे होंठ
मेरी बाँहें
मेरा रोम-रोम
शायद एक अंधा कुआँ है
या है शायद एक
कृष्ण विवर
जो तुम्हें
हरपल
हर लम्हा
देखकर
छूकर
पीकर
समेटकर
जी-जीकर भी
भरता ही नहीं

Monday, November 8, 2010

तारीफ करता हुआ लड़का

मुझे खुद में इतना कभी मत मिलाओ
कि
मेरी तारीफ
प्रशंसाओं पर तुम
खुश न होओ
भर-भर न जाओ
मुझे बहलाने के लिए मत कहो
‘हाँ, ठीक है ना’
या कि बस इतना भी न कहो
‘बहुत पागल हो तुम’
हाँ मैं पागल हूँ मगर
जो तारीफ मैं तुम्हारी करता हूँ
यकीन मानो
तुम उसके लायक हो
मेरे द्वारा
तुम्हारी की हुई तारीफ
सचमुच तुम्हारी व्यक्तिगत उपलब्धि है
मेरा प्यार नहीं
मैं तुम्हें प्यार करता हूँ
मगर
प्रशंसा
अलहदा चीज है
यकीन मानो
यह प्रत्युत्पन्न है
मुझे खुद में शामिल समझो मगर
इतना ही कि
तुम्हारी आँखों
होंठों
बालों
रंग की तारीफ करता हुआ
यह लड़का
तुम्हारी नहीं
इन सुंदर चीजों की
तारीफ कर रहा है
जो सचमुच सुंदर है

तुझको तो ख़बर नही मगर,एक सादा-लौह इंसान को....*

तुम्हारा नाम नहीं ले सकता
बस तुम्हारा
बाकी सब नाम
महज शब्द हैं मेरे लिए
मगर
रूप
रस
गंध और
ध्वनि
प्रकटती है बस इन्हीं शब्दों से
जो तुम्हारा नाम है
बाकी सब नाम
महज यथार्थ है मेरे लिए
महज क्षण, क्षणिक मगर
भूत
भविष्य
वर्तमान
स्मृति, कल्पनाएँ और दृष्टि
जुड़ती है बस उसी नाम से
जो तुम्हारा है
बाकी सब नाम
महज पढ़ती है आँखें
मगर
आँख
कान
नाक
त्वचा
और रोम-रोम
पुलकता है बस उसी नाम से
जो तुम्हारा है
..........
देख लो !
प्यार ने मुझे परंपरागत
लजीली भारतीय स्त्री बना दिया


                                                       *( साहिर लुधियानवी से साभार )

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मुझे फूलों से प्यार है, तितलियों, रंगों, हरियाली और इन शॉर्ट उस सब से प्यार है जिसे हम प्रकृति कहते हैं।