Friday, April 30, 2010

अभिसारिका बिन कैसा मिलन

अभिसारिका बिन कैसा मिलन

कैसी मिलन की यामिनी
कब तक रचूँ शब्द देह
कब तक कल्पित अभिसार करूँ
कब तक रचूँ मूर्ति कल्पना की
कब तक रचूँ कंचन कामिनी
अभिसारिका बिन कैसा मिलन
कैसी मिलन की यामिनी
कैसी सुहानी रात है यह
कैसी धवल है चाँदनी
मन वीणा के तार कह रहे
छेड़े कोई आकर रति रागिनी
अभिसारिका बिन कैसा मिलन
कैसी मिलन की यामिनी
प्रीत का कोई गीत गाए
संग प्रिया के मन भी गाए
खोजती है जिनको निगाहें
आ जाओ मधुबन की मालिनी
अभिसारिका बिन कैसा मिलन
कैसी मिलन की यामिनी

Wednesday, April 28, 2010

कली चटकी कहीं, फूल खिला कोई

कली चटकी कहीं, फूल खिला कोई
मन उपवन था उजड़ा-सा
पतझड़ था युगों से आँगन में
आई बसंत बहार
लाया उसे बुला कोई
कूक कोयल की, भँवरे का गुँजन
तड़प रहा था, कबसे सुनने को मन
मन मुराद पूरी हुई, शुभ घड़ी आया कोई
गुलाब खिला, मोगरा महका
संदल चहका, मन खुश्बू से बहका
मन जैसे सोना हुआ
उस पर सुहागा लाया कोई
मन को जैसे पंख लगे
उड़कर आया पास तेरे
पीकर जिसको बहका नीरव
ऐसी मधु लाया कोई
कली चटकी कहीं फूल खिला कोई

मेरा काव्य संग्रह

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मुझे फूलों से प्यार है, तितलियों, रंगों, हरियाली और इन शॉर्ट उस सब से प्यार है जिसे हम प्रकृति कहते हैं।