डूबता है,उबरता है, पार पाता है
इन दिनों मन मेरा कश्ती बन जाता है
इन दिनों मन मेरा कश्ती बन जाता है
रिमझिम फुहारों से बचना चाहता है
तेज बौछारों में भीगना चाहता है
तेज बौछारों में भीगना चाहता है
आ न जाए ख्वाब कोई बंद आंखों में
रात ,बिस्तर छोड़, सोफे पर बिताता है
रात ,बिस्तर छोड़, सोफे पर बिताता है
पौ फटे का सूरज देखना है बस
ताख-आलों में रखा हर दीपक बुझाता है
ताख-आलों में रखा हर दीपक बुझाता है
कहीं बदल रहा है मेरी खातिर कुछ
ये राज वो अपने से भी छिपाता है
ये राज वो अपने से भी छिपाता है