Thursday, April 14, 2011

गुलमर्ग टॉप

बर्फ पिघलने से
उपजी
दलदली जमीन किनारे
उगा है जीवन
पीले-बैंजनी
नन्हें-से फूल
जीवन कहाँ-कहाँ
कैसे-कैसे पनपता है

Tuesday, April 12, 2011

बहता अम्रत

यहाँ पहाड़ों पर
खेतों के
ढलवाँ किनारे
दौड़ता है
बर्फ से निकला पानी
मैं कलपता हूँ मैदानी
हाय! व्यर्थ ही बहा जा रहा है पानी

Monday, April 11, 2011

डल किनारे

दौड़ रहा है
जीवन
बहते पानी-सा
और मैं किनारे

Sunday, April 10, 2011

गुलमर्ग

दूर से चमकती
दीखती थी बर्फ
श्वेत-धवल चाँदी-सी
पास पहुँचे
लिए धौंकनी साँसें
और पसीने से तरबतर
तो मिट्टी सनी बर्फ
गंदला पानी
और कीचड़ निकला
धत् तेरे की
गुलमर्ग भी
जिंदगी-सा
भ्रम औऱ नीरस निकला

मेरा काव्य संग्रह

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मुझे फूलों से प्यार है, तितलियों, रंगों, हरियाली और इन शॉर्ट उस सब से प्यार है जिसे हम प्रकृति कहते हैं।