Saturday, June 12, 2010

संतति का सच

वह तेज हवा थी
तोड़ गई
आखिरी पत्ता दरख़्त का
शाख ने कहा
-अस्फुट से- झुँझलाए स्वर में
यह क्यों
मुझसे क्या बैर तेरा
धीरे से मुस्काई हवा
कहा सुरीले स्वर में
सुन, इसलिए कि
कोंपले फूटे दोबारा
बहारें आए फिर से
तुझे मोह छो़ड़ना ही होगा
जीवन मोह से शुरू होता है
मोह-भंग पर अंत (तो बहारें, कोंपलें, मौसम?)
अरी पागल !
पुनर्जन्म, मोह की संतति

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मुझे फूलों से प्यार है, तितलियों, रंगों, हरियाली और इन शॉर्ट उस सब से प्यार है जिसे हम प्रकृति कहते हैं।