शीशम, अमलतास और गुलमोहर
निगाहें लौट आती हैं
इनकी खुशबू
और आकर्षण से
सराबोर होकर
मैं
यहाँ दूर बैठा हूँ
क्या सचमुच
हाँ भी, नहीं भी
तो फिर?
अनजानी
अनपहचानी
धुँधलाई-सी एक
गुफा-सी में
अरे! यह तो मन है किसी का
किसका?
खोज रहा हूँ, उसी को
अथक, अनवरत ........
सुन्दर प्रस्तुति ...
ReplyDeleteमंगलवार 15- 06- 2010 को आपकी रचना (गम में लिखे मैंने गीत )... चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर ली गयी है
http://charchamanch.blogspot.com/
बहुत सुन्दर!
ReplyDeletekya kahoo dil ke jajbaat
ReplyDeletejo na kah saka
muh mein hi
simat kar rah gai
dil ki baat
un maun darkhaton ki
manind ankahi si
anchhui ek lambi
vedana ki dastaan