Friday, June 11, 2010

स्वाति बूँद

पीयूषवर्णी मेघ ने
द्रवित हो
एक बूँद टपकाई सहसा
कदली, सीप और भुजंग ने
तुरंत अपना
मुँह खोला
लेकिन
बूँद की कोई और मर्जी
वह गिरी
साँवली गोरी के
उत्तुंग वक्ष पर-
गोरी सिहर कर लरज गई,
गंध कपूर की
मोती की शुभ्रता
और जहर-सी तीव्रता, तीक्ष्णता
उस बूँद ने पाई
और हो गई सार्थक.....
विधाता की माया अजब.....
स्वाति नक्षत्र हुआ कृतार्थ।

4 comments:

  1. sunda bhaav....shringaar samo diya aapne to...r

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  2. साँवली गोरी के
    उत्तुंग वक्ष पर-
    गंध कपूर की
    मोती की शुभ्रता

    क्या कह दिया आप ने !

    चित्र अनावश्यक लगा। कविता के प्रभाव और अनुभूति को तनु करता है।

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    Replies
    1. abhivyakti, expression is reflection of writer, you have expressed the freedom of nature. Drop of arcturous is innocent God gives an opportunity to every living things.

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मुझे फूलों से प्यार है, तितलियों, रंगों, हरियाली और इन शॉर्ट उस सब से प्यार है जिसे हम प्रकृति कहते हैं।