Thursday, June 10, 2010

चिरमिलन हो चिरंतन


अधरों से अधर
धड़कता वक्ष सीने से
कपोल कपोलों से
मिले,.....।
भर गई नासापुटों में,
साँसों की गरमाई,
आँखों से लाज के
हरसिंगार झरे....।
कान तक कपोल
हो गए रतनार.....।
श्यामवर्णी केशों में
घूमती
ऊँगलियों ने
स्वाद जाना
प्यार का....।
शरबती आँखों से
छलक गई
ढेर सारी शराब
तृप्त होकर अंतस से
आई आवाज
चिरमिलन हो चिरंतन
या कि आखिरी साँस हो

6 comments:

  1. खूबसूरत अभिव्यक्ति....चिर्मिलन कि उत्कंठा को बताई हुई

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  2. महत्वपूर्ण पोस्ट, साधुवाद

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  3. वाह बहुत सुन्दर लिखा है।

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  4. प्रेम की उन्मुक्त अभिव्यक्ति .. बहुत लाजवाब ...

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मुझे फूलों से प्यार है, तितलियों, रंगों, हरियाली और इन शॉर्ट उस सब से प्यार है जिसे हम प्रकृति कहते हैं।