Sunday, April 18, 2010

किसके लिए, किसके लिए


लिखूँ किसके लिए, किसके लिए
जिसे लुभाने की खातिर साक़ी बन
मधुमय मधु गीतों को गाता रहा
उसने मुझे विषघट समझ कर
दूर नीरव अधरों से किया
रोऊँ किसके लिए, किसके लिए
जग जो मुझे संताप दे
दर्द दे हृदय पर आघात दे
उनको समझता रहूँ अपना
क्यों अश्रु हँसी में ढाल लूँ
करूँ, किसके लिए, किसके लिए
जिसको समझकर धर्म अपना
मैंने अनवरत पालन किया
जग ने अपनी परिभाषा से
उस कर्म को अधर्म कहा
डरूँ किसके लिए, किसके लिए
अंत के जिस फासले को
बनाए रखा था निरंतर
वो प्रारंभ से साथ मेरे
मुझपर दया से मुस्कुराता रहा
मरूँ किसके लिए, किसके लिए
अपनी छाती को बना ढ़ाल
जिसके हेतु अग्निशर खाता रहा
वो मीत मेरा पीछे खड़ा
कुटिलता से मुस्कुराता रहा
लिखूँ किसके लिए, किसके लिए

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मुझे फूलों से प्यार है, तितलियों, रंगों, हरियाली और इन शॉर्ट उस सब से प्यार है जिसे हम प्रकृति कहते हैं।