बिखरे बाल
मन उदास
कभी रूकी, कभी तेज चलती साँस
न खुद का न किसी और का
न तन्हाई का खयाल
रूके हुए सृजन का
उलझती हुई राहों का दुख
बढ़ती हुई समंदर की प्यास
छटपटाती हुई आत्मा का त्रास
पेशानी पे सिलवटें सोच की
आँखें दूर कहीं
मगर टिकी हुई नहीं
उमड़ती घुमड़न का शोर मचाता ज्वार
लहरों से टकराते
बेतरतीब विचार
कभी-कभी
ऐसा भी वक्त आता है
जिंदगी में
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