धूप-छाँह के अंतहीन सिलसिले में
कोई गहरी छाँह पर
दिन-रात के घूमते चक्र में
अपनी-सी एक शाम कब
बासंती, हेमंती, पतझड़ी मौसम में
प्रतीक्षित कोई कोंपल पर
ऊँची-नीची स्वरलहरियों के कोरस में
अपना कोई छंद कब
यह सब जाने कब
अभी तो बस
दौड़, प्रतीक्षा, संघर्ष
और गहरी, गहराती उदासी सब
बहुत सुन्दर..
ReplyDeleteउदास सी करती रचना ..गहन अनुभूति
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