जब कभी किसी कारण
तुम्हारी आंतरिक तन्मयता
हो जाती है भंग
तो मन पर एक अनजाना बोझ
छाने लगता है धीरे-धीरे
जो बढ़ता जाता है क्रमशः
और तुम नीरस यथार्थ के तंग रास्तों पर चलने को
मजबूर हो जाती हो
और छोड़ बैठती हो
मूल शांत व्यक्तित्व
कभी-कभी सोचता हूँ
बेचारा आम आदमी
कतई दोषी नहीं
अपने ढर्रे के जीवन से उपजे
उथले और सतहीपन के लिए
क्योंकि उसके पास तो कोई
आंतरिक स्रोत भी नहीं
जहाँ तर-तृप्त होकर
वह शांत हो सके
तुम्हारी आंतरिक तन्मयता
हो जाती है भंग
तो मन पर एक अनजाना बोझ
छाने लगता है धीरे-धीरे
जो बढ़ता जाता है क्रमशः
और तुम नीरस यथार्थ के तंग रास्तों पर चलने को
मजबूर हो जाती हो
और छोड़ बैठती हो
मूल शांत व्यक्तित्व
कभी-कभी सोचता हूँ
बेचारा आम आदमी
कतई दोषी नहीं
अपने ढर्रे के जीवन से उपजे
उथले और सतहीपन के लिए
क्योंकि उसके पास तो कोई
आंतरिक स्रोत भी नहीं
जहाँ तर-तृप्त होकर
वह शांत हो सके
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