Thursday, May 13, 2010

तब तलक गम को सहेजूँ


दर्द को समेटू कहाँ तक
कब तलक गम को सहेजूँ
जार-जार रोता है दिल
रक्तिम है हर कोना
कोई मरहम, मैं पाऊँगा
मुश्किल लगता ऐसा होना
दर्द को समेटू कहाँ तक
कब तलक गम को सहेजूँ
तज इसे सकता नहीं मैं
साथ निभ सकता नहीं
मजबूर है हालात इतने
खुल कर रो भी सकता नहीं
दर्द को समेटू कहाँ तक
कब तलक गम को सहेजूँ
काश ऐसा हो सके कि
फैल जाए दामन मेरा
फिर जी भर समेटू
बचा जो दर्दों गम तेरा
दर्द को समेटू कहाँ तक
कब तलक गम को सहेजूँ
चल रहा हूँ यह सोचकर
वह मुकद्दस वक्त आए
दूर कहीं किसी क्षितिज पर
मिलन तुझसे हो ही जाए
दर्द को समेटू वहाँ तक
तब तलक गम को सहेजूँ

2 comments:

  1. milan ho hi jaayega ji,bas tab tak saheje rakho is rachnaatmak gam ko...

    kunwar ji,

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  2. वाह! दर्द की बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!

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मुझे फूलों से प्यार है, तितलियों, रंगों, हरियाली और इन शॉर्ट उस सब से प्यार है जिसे हम प्रकृति कहते हैं।