Saturday, May 15, 2010

तब हुई कोई कविता

विरही के यादों के मौसम में
रिमझिम बरसते सावन में
दो बूँद मिली हो अश्रु की
ऐसा संगम जब-जब हुआ
तब हुई कोई कविता
हिरण-से इस चंचल मन ने
स्मृति वन में दौड़ लगाई
कहीं ठहर दो लम्हे काटे
ऐसी जब कोई ठौर मिली
तब हुई कोई कविता
तनहाई के सूने क्षण में
बेचैन के दर्द भरे आलम में
पायल की झंकार बजी कोई
वंशी कहीं मधुर सुनी कोई
तब हुई कोई कविता
भीड़ भरे इस जंगल में
बेगाना हर शख्स मिला
सुकुन कितना मिला नीरव
जब कोई अपना-सा मिला
तब हुई कोई कविता
कल्पना ने जब ख्वाब बुना
कवि के खयालों में लिपट कर
ऐसा अद्भुत मिलन हुआ
खुशी रोई दर्द से लिपटकर
तब हुई कोई कविता

3 comments:

  1. are waah kavita ki paribhasha kitne sundar shabdo me kar di...bahut khoob...

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  2. बहुत सुन्दर कविता ....कविता की सही परीभाषा यही है ....सुन्दर विचारों की अभिव्यक्ति ...अच्छे ढंग से की है ...पढ़कर अच्छा लगा ...शब्द भी अच्छे चुने है ...बधाई स्वीकारे

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मुझे फूलों से प्यार है, तितलियों, रंगों, हरियाली और इन शॉर्ट उस सब से प्यार है जिसे हम प्रकृति कहते हैं।