Tuesday, July 8, 2014

साधारण-असाधारण



कभी उसके हाथों से
ज्यादा नहीं हुआ नमक
न फीकी रही दाल-सब्जी
मिर्च-मसालों में भी
वो संतुलन साधती है
बोल-चाल, हाव-भाव में
वो भले रहे ऊँची-नीची
अपने काम को लेकिन
वैराग-भाव से निभाती है
उसके हाथों में स्वाद है
बनाव-शृंगार में सादगी
कोई बात तो है जो उसे
इतना थिर बनाती है
.........................
नमक-मिर्च का संतुलन साधने वाली
हमारी जिंदगियों को स्वर्ग बनाती है
एक सुघड़, संपूर्ण स्त्री का होना आसपास
माहौल खुशनुमा बनाती है
.......................................
फिर क्या फर्क पड़ता है कि
वो किसकी पत्नी, बहन, माँ, बेटी
बुआ, काकी, मासी, चाची कहलाती है.

1 comment:

मेरा काव्य संग्रह

मेरा काव्य संग्रह
www.blogvani.com

Blog Archive

Text selection Lock by Hindi Blog Tips

about me

My photo
मुझे फूलों से प्यार है, तितलियों, रंगों, हरियाली और इन शॉर्ट उस सब से प्यार है जिसे हम प्रकृति कहते हैं।