मन
जब प्रदर्शन-प्रिय हो जाता है
सघन विचार
आते-आते खो जाता है
गहराई में
जाने से पहले
छोड़ना ही पड़ता है
ऊँचाई की हर राह का खयाल
वरना
मन
उस नौसिखिए तैराक-सा हो जाता है
जो गहरे गोते की चाह में
ऊँचाई से कूद लगाता है
और
तमाम कोशिश के बावजूद
पानी द्वारा
तीन बार उछाला जाता है
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नाक-मुँह-कान में
पानी भरे
जैसे-तैसे
किनारे आता है
.............................
गहराई का गोता
ऊँचाई से नहीं
सतह के पास से
निःशब्द लगाया जाता है
Very True....
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