Tuesday, February 18, 2014

नई-नई स्कूल टीचरृ -सा सूरज




किसी
स्कूली शिक्षिका की तरह
सूरज
आने से पहले
मुर्गे से बांग लगवाता है
पक्षियों को चौंकाता-जगाता है
भेजता है हरकारा
ब्लैक बोर्ड साफ करवाता है
फिर धीर-गंभीर चेहरा बनाकर
अपने सौंदर्य को दबा-छिपाकर
करता है प्रवेश
(मंत्रमुग्ध करने से रोक नहीं पाता, नटखट स्टूडेंट्स को)
छा जाती है
गरिमामय शांति
(अंदर से गुदगुदाती)
आसमान के धुले-पुछें
श्यामपट्ट पर
भरता है
ढेर सारे रंग
श्यामल नीला
धूसर सफेद
हल्का सिंदूरी
नारंगी
और चटख सुनहरा
लिखता
लिखता चला जाता है
कुछ उतारते हैं रंग
अपनी कॉपी में
(या कि जिंदगी में)
कुछ बस देखते रहते हैं
(जो पढ़ते हैं ट्यूशन बाद में)
कभी-कभी
सूरज का सिर चढ़ जाता है
लाल होकर अंगारा हो जाता है
भुला देता है हेकड़ी सबकी
मगर अंततः
बच्चों से प्यार करने वाली
टीचर की तरह
शांत होता है
दुलारता है
शाम लाता है
जल्दी-जल्दी समेटता है
सामान
संक्षेप में फिर
पूरा पाठ दोहराता है
सुनहरे चटख से
लोहित-श्यामल-पीले तक
कुछ पुछां, कुछ लिखा छोड़कर
क्लास से बाहर निकल जाता है
(सृजनशील छात्रों में प्रेरणा भर जाता है)
आखिर लेनी होती है
उसे दूसरी कोई क्लास
कल फिर आने के लिए
आश्वस्ति दे जाता है
नई-नई स्कूल टीचर-सा सूरज
रोज नई ड्रेस पहनकर आता है
(और सबका पहला प्यार बन जाता है)

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मुझे फूलों से प्यार है, तितलियों, रंगों, हरियाली और इन शॉर्ट उस सब से प्यार है जिसे हम प्रकृति कहते हैं।