जो वक्त है कुछ रचने -रचाने का,अफ़सोस
वही वक्त है दुनिया में ख़ाने-कमाने का
मेरे घर आओ तो हँसो-मुस्कराओ,याद रखो
रिवाज़ नहीं है हमारे यहाँ,रोने-रुलाने का
मेरी छत पर फूल ही फूल खिले हैं,गोया
कलियों को मौका चाहिये सूरज से आँखें लड़ाने का
कोई बात है जिससे उदास है वो,वरना
बसंत का मौसम तो है उसके खिलखिलाने का
कोई दिल की सुने या दिमाग की,खैर हो
जो मैकदे का वक्त है वही है रोज़ा निभाने का
वही वक्त है दुनिया में ख़ाने-कमाने का
मेरे घर आओ तो हँसो-मुस्कराओ,याद रखो
रिवाज़ नहीं है हमारे यहाँ,रोने-रुलाने का
मेरी छत पर फूल ही फूल खिले हैं,गोया
कलियों को मौका चाहिये सूरज से आँखें लड़ाने का
कोई बात है जिससे उदास है वो,वरना
बसंत का मौसम तो है उसके खिलखिलाने का
कोई दिल की सुने या दिमाग की,खैर हो
जो मैकदे का वक्त है वही है रोज़ा निभाने का
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