संभावनाओं से लबरेज़ जीवन हरेक को लुभाता है
तुम बसंत के आम्रव्रक्ष बन जाते हो,और
हर आमोख़ास तुम पर निगाह गढ़ाता है
पिछली उपलब्धियों के आधार पर दूसरों को तौला जाता है
इस मौसम में कितना फलोगे
अनुमान लगाया जाता है
तुम्हारे ‘बौराते’ ही जग ख़ुश हो जाता है
तुम्हारा बौराना बसंत को रितुराज बनाता
हवाओं को महकाता-मदमाता है
माह में घोलता है मधु, मधुमास बनाता है
फल की आस हरेक को है
इसीलिए,
फलदार पेड़ एक उम्मीद जगाता है
तुम एक उम्मीद हो-बस याद रहे-
तुमही से दुनिया है,गति है, जीवन है,इसका बनना-बनाना है
(यह न सोचते बैठ जाना कि
फल में ख़ुशबू-रंग-स्वाद भरने में
जड़ों को कितना गहरे,अँधेरे में जाना है
कितनी ग़ुमनामी,तनहाई,ख़ला में खो जाना है)
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