Saturday, January 19, 2013

अपना पता नहीं देती..

जाने ये आग है या प्यास अपना पता नहीं देती..
जलाकर राख कर दे या, फिर बुझा क्यों नही देती

एक बवंडर-सा है अंदर, दिल भी परेशां -परेशां है
किस्सा शुरू होगा या कोताह, तकदीर बता क्यों नही देती

वो परेशां किसी ओर से नहीं, बस अपने-आपसे ही
किससे सीखी यह तहजीब-तालीम, जता क्यों नही देती

बच्चे-सा है मगर बच्चा नहीं है उसका दिल
बहलाने की लाख कोशिशें, बहला क्यों नही देती

मुखड़ा तुमसे बनवाती, बाकी ग़ज़ल मुझ से लिखवाती
ज़िन्दगी दोनों को मुकम्मल हुनर सिखा क्यों नही देती.

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मुझे फूलों से प्यार है, तितलियों, रंगों, हरियाली और इन शॉर्ट उस सब से प्यार है जिसे हम प्रकृति कहते हैं।