कई बार रात-बिरात
नींद खुल जाती है
देर तलक कोशिश
करुँ सोने की,
नींद नहीं आती है
यक-ब-यक
रोशन हो जाता है
दिमाग़
घुप्प अँधेरे कमरे में
जैसे, रोशनी की एक
किरण आती है...
तनहाई और उनींदेपन में
एक कविता उतर आती है
रात गुलज़ार हो जाती है
.............................
यह अलहदा है कि
अक्सर सुबह वह
- बहुत सोचने पर भी –
याद नहीं आती है
.......................
मैं आश्वस्त हो जाता हूँ
मुझे मुहब्बत है तुमसे
क्योंकि, अब भी उनींदी रातों में
कविता ही मुझ तक आती है...
वाह बहुत खूब
ReplyDeleteधन्यवाद...
Deleteसुन्दर भाव ..
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