रोज़े-अब्र (बरसात के दिन) उदास रहती है
शबे-माहताब (चाँद की रात) उदास रहती है
खूबसूरत शै है वो मगर
जहीन बनकर उदास रहती है
सर्दियों में जाने क्या बात है
सरे-शाम उदास रहती है
गज़लें सुनती है लेटकर
लेटे-लेटे उदास रहती है
मुझसे करती है बेहद मुहब्बत
मुझसे मिलकर उदास रहती है
दुनिया में है मंदी, मोहल्ले में शोर
बस सुनती है और उदास रहती है
सच्चे मायनों में है इंसान
हर किसी के दुख में उदास रहती है
न मिलाकर उदास लोगों से हुस्न तेरा बिखर न जाए कहीं... :-)
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