Saturday, December 24, 2011

आश्चर्य है...!


माथे से
अंगूठे की पोर तक उमड़ती
जाती, ये लहरें...
सीने का वो उमड़ता तूफान,
खुशबू के दुर्निवार भँवर,
आँखों की अमाप गहराई
कोई शख्स कैसे
पूरा समंदर
हो जाता है

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मेरा काव्य संग्रह

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मुझे फूलों से प्यार है, तितलियों, रंगों, हरियाली और इन शॉर्ट उस सब से प्यार है जिसे हम प्रकृति कहते हैं।