Monday, June 27, 2011

कैसे भी हम मिलें


मिट्टी
स्वर्ण
मोमियाँ
लौह
काग़ज़ी
कैसा भी हो दीप
दीप की जंग एक-सी होती है
जग
जीवन
गली
डगर
घर
कहीं जले दीप
दुनिया में
उजाले की गंध एक-सी होती है
गीत
कविता
नज़्म
कथा-कहानी
कहीं चले
कलम
स्याही की
रोशनाई एक-सी होती है
तुमसे
उससे
उससे
सबसे
कहीं-किसी से
जले नेह का दीप
मन की उमंग एक-सी होती है
ख़त
खबर
संदेसा
मैं आऊँ
तुम्हें बुलाऊँ
कैसे भी हम मिले
मिलन की तरंग एक-सी होती है

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मेरा काव्य संग्रह

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मुझे फूलों से प्यार है, तितलियों, रंगों, हरियाली और इन शॉर्ट उस सब से प्यार है जिसे हम प्रकृति कहते हैं।