Saturday, June 4, 2011

खुद बिना दिल के जीता हूँ


एक दिन मैंने सोचा
अपने दिल के सारे टुकड़े
ढूँढकर लाऊँगा
फिर से इन्हें जोड़कर
नया दिल बनाऊँगा
खोज से लौटा तो
एक टुकड़ा और कम था
देखा था मैंने
दिल के टुकड़ों पर
लोगों ने अपने
आशियाने खड़े कर लिए हैं
रास्ते में एक शख्स
निराश खड़ा था
उसके पास
नींव में डालने को
कुछ भी न था
मैं
आखिरी टुकड़ा भी उसे दे आया
और खुद बिना दिल के जीता हूँ

1 comment:

  1. Dr Rajesh ...I have never read such an appealing creation !...It's awesome !

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मुझे फूलों से प्यार है, तितलियों, रंगों, हरियाली और इन शॉर्ट उस सब से प्यार है जिसे हम प्रकृति कहते हैं।