Saturday, May 22, 2010

छोड़ दी मैंने तल्खियाँ


कल शाम एक अजीब सा मंज़र पेश आया
तेरा गुरूर मुझसे मेरा हाल पूछने आया
कितना पहरे बैठाए थे तूने
खुद पर खुद की आरजुओं पर
ये गज़ब कैसे हुआ मगर
तुझ पर तेरा ही न बस चल पाया
कल शाम एक अजीब सा मंज़र पेश आया
तेरा गुरूर मुझसे मेरा हाल पूछने आया
उसके आने की न मुझको खबर हुई
न सुराग, न आहट, न अहसास
मेरे पास आकर जब तक ये न बतलाया
तू जिसके ख़्वाबों में गुम, मैं उसी का साया
कल शाम एक अजीब सा मंज़र पेश आया
तेरा गुरूर मुझसे मेरा हाल पूछने आया
और जब वो मेरा मेहमाँ हुआ
छोड़ दी मैंने तल्खियाँ, पुरानी रंजिश
पहले उसके साथ एक जाम पिया, फिर
फिर से नग़मा भूले प्यार का गाया
कल शाम एक अजीब सा मंज़र पेश आया
तेरा गुरूर मुझसे मेरा हाल पूछने आया

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मुझे फूलों से प्यार है, तितलियों, रंगों, हरियाली और इन शॉर्ट उस सब से प्यार है जिसे हम प्रकृति कहते हैं।