Thursday, May 20, 2010

न गेसूओं को तुम हटाओ


यूँ ही छाई रहने दो काली घटाएँ
न गेसूओं को तुम हटाओ
महकने दो साँसों में शबाब
खिलने दो गालों में गुलाब
छलकने दो आँखों से मधु
होंठो से बरसने दो शराब
यूँ ही छाई रहने दो ख़ुमारी
मदहोश हूँ न होश में मुझको लाओ
यूँ ही छाई रहने दो काली घटाएँ
न गेसूओं को तुम हटाओ
टिका रहने दो सर अपनी गोद में
शानों पर रेशमी ज़ुल्फें लहराने दो
मुझको मालूम है हक़ीक़त ख़्वाबों की मगर
यह ख़्वाब जिंदगी भर का हो जाने दो
ख़ामोशी से देखती रहो मुझको बस
हो सके तो मेरी आँखों में बस जाओ
यूँ ही छाई रहने दो काली घटाएँ
न गेसूओं को तुम हटाओ

4 comments:

  1. बहुत सुन्दर...कई दिनों से आ नहीं पा रहा था, क्षमायाचना!

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  2. बहुत अच्छी रचना

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मुझे फूलों से प्यार है, तितलियों, रंगों, हरियाली और इन शॉर्ट उस सब से प्यार है जिसे हम प्रकृति कहते हैं।