न ये बात उसकी
एक झरोखा-सी बन गई है
एक अदद किताब उसकी
एक पात्र पर वो जा बैठी
एक पात्र मैंने चुना
पात्रों की जुबाँ समझते रहें
वो मेरी
मैं बात उसकी
उसकी छुअन, उसकी गंध
इसी में साँसें उसकी
फड़फड़ा रहे हैं वर्क हवा से
या कँपकँपा रही है जुबाँ उसकी
गाढ़ा कर दिया है कलम से
बहुत-से अल्फ़ाज को मैंने
मेरे खयालों की हमराज
बन गई है किताब उसकी

सुन्दर भाव से भरा हुआ काव्य है|मेरी शुभकामनाये...
ReplyDeleteएक झरोखा सी बन गयी है. किताब उसकी......
ReplyDeleteसुंदर अभिव्यक्ति.
बहुत ही भावमय प्रस्तुति………बधाई।
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