Wednesday, September 8, 2010

तुम

तुम मेरे जीवन में सबसे
ऊँची, गहरी, सबसे
भारी!
नहीं यह तेरेपन की जीत,
न ही यह मेरेपन की हार
सब कुछ लगता पूर्व नियोजित
बनना है जिसका हमको
अधिकारी।
कभी करके जिनको या
दिन जाया करते थे बीत
आज वे कोसों मुझसे दूर
लिया तुमने सबसे मुझको जीत।
बँटा था मैं कितने टुकड़ों में हाय
तुमने लिया मुझे सहेज
दिया व्यक्तित्व नया औ’ प्रीत
स्वीकारो इसे मेरे ओ’ मीत।

1 comment:

  1. बहुत अच्छी प्रस्तुति।

    हिन्दी, भाषा के रूप में एक सामाजिक संस्था है, संस्कृति के रूप में सामाजिक प्रतीक और साहित्य के रूप में एक जातीय परंपरा है।

    हिन्दी का विस्तार-मशीनी अनुवाद प्रक्रिया, राजभाषा हिन्दी पर रेखा श्रीवास्तव की प्रस्तुति, पधारें

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मुझे फूलों से प्यार है, तितलियों, रंगों, हरियाली और इन शॉर्ट उस सब से प्यार है जिसे हम प्रकृति कहते हैं।