बड़े बेलौस, बिन्दास
अपनी कविताओं को
प्रेम-कविताएँ कह लेते हो
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मैं तो अपनी लेखनी को
कविताएँ कहने में हिचकता हूँ
कविताओं को प्रेम-कविताएँ
इतनी आसानी से तो नहीं
नहीं ही कह सकता हूँ
सच तो यह है,मैं इस
शब्द को अपनी ज़ुबान पर
लाने में डरता हूँ
(और क्या सारी कविताऐं
प्रेम-कविताऐं नहीं होतीं )
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दुनिया सच कहती है

मगर कहते हैं कि इश्क और मुश्क छुपाए नहीं छुपते....कुछ अपने अनुभव भी बताईए...।
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