जितने हो, उससे भी उथला कर जाएगा
ये भरा हुआ बाज़ार, कुछ नहीं दे पाएगा
एक दिन अचानक इस चमक-दमक से ऊब उठोगे
क्या सोचते हो, उसके बाद बुद्धत्व मिल जाएगा
वो दरिया और है, जिसे डूबकर करते है पार
ये मखमली दलदल तुम्हें पूरा लील जाएगा
दौड़ तो एक जगह से शुरू हो, दूसरी पर होती है खत्म
यह तिलस्मी सफर तुम्हें केवल कोल्हू का बैल बनाएगा
ये कौन कहता है शरीक-ए-हयात न हो
बाँधो न पट्टियाँ, नज़रों में अँधेरा बस जाएगा
No comments:
Post a Comment