उसका मेरी ज़िन्दगी से ऐसा नाता
है
जैसे नये मटके में पानी ठंडाता
है
कतरा-कतरा वो रिसता जाता है
मुझसे
फ़ना होकर भी स्वादो-खुशबू बढ़ाता
है
मेरा अस्ल कहना नहीं महसूस करना
है
रीतते मटके का पानी ठंडा होता
जाता है
पता नहीं वो मुझमे है या मैं
उसमें
जादू-सा है कुछ, हममे बढ़ता जाता
है
पास रहे या दूर, आगे-पीछे-दाएं-बाएं
कहीं रहे वो कायनात-सा फैलता
जाता है
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