सब सामान्य था...
पहले-पहले जब देखा घना जंगल,
खामोशी को खटखटाती हवा,
कानों में रस घोलती कोयल, पपीहा, झींगुर और टिटहरी,
सघन वन में घास की सरसराहट,
कल-कल बहती नदी, उसमें
दीखते किनारे के प्रतिबिंब
गोल-गोल पत्थर,
सब पहले से था, ऐसा ही,
तुम्हीं ने पहले-पहल देखा, सराहा, आह भरी
तुम्हारे देखे जाने से पहले
सब सामान्य था,
पहाड़ी पर बना गेस्टहाउस,
आस-पास उगी जंगली तुलसी
रात को दूर से आती
आदिवासी संगीत की लय-तान
खिड़की के बाहर चमकता चाँद-शरद का
फ़िजाओं पर तारी चाँदनी का दुपट्टा,
जब तक तुमने नहीं देखा था,
सामान्य था..
तुम्हारी नज़रों ने देखा,
तुम्हारे कानों ने सुना,
तुम्हारी त्वचा ने छुआ,
तुम्हारी नाक ने सूंघा,
तुम्हारी जुबान ने चखा और
महसूस किया तुम्हारी रूह ने
..... सब विशिष्ट हो गया ....
सब सामान्य था, पहले
तुमने अपनी ख़ासियत का एक हिस्सा इन्हें दे दिया
करवाचौथ की हार्दिक मंगलकामनाओं के साथ आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि-
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (03-11-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
धन्यवाद...
Deleteसब सामान्य था पहले ..
ReplyDeleteऔर बाद में सब विशिष्ट हो गया .
बहुत खूब
धन्यवाद...
Delete