Wednesday, March 9, 2011

हाय! कहीं ये स्वप्न न बीत जाए

झरनों की कल-कल-सी तुम
बर्फ की तरह झरती तुम्हारी हँसी
चीड़ों से आती गंध-सी सुवास
कहीं तुम्हारा साथ न छूट जाए
हाय! कहीं ये स्वप्न न बीत जाए

दिन-रात कँपकँपाती यह ठंड
गर्म चाय के गुनगुने स्पर्श-सा सुख
तमाम गर्म कपड़े और गर्म टोप
मैदान में जाते ही यह सब न बीत जाए
हाय! कहीं ये स्वप्न न बीत जाए

ऊनी दस्ताने और मफलर ऊनी
कांगड़ी और अलाव की आँच-सी तुम
दूर शिखरों पर जमी बर्फ
सूर्य की किरण से न पिघल जाए
हाय! कहीं ये स्वप्न न बीत जाए

नवविवाहित जोड़ों का हनीमून
बाँहों में बाँहें डाले घूमते युगल
मदहोश कर देने वाला समां
ये मादक माहौल न गुम जाए
हाय! कहीं ये स्वप्न न बीत जाए

कुनमुनाती-सी रजाई से निकलती
बाहर जाने के नाम पर बिसूरती
बाहर निकलते ही बह निकलती
गर्म सोतों-सी यह गर्मी न जम जाए
हाय! कहीं ये स्वप्न न बीत जाए

1 comment:

मेरा काव्य संग्रह

मेरा काव्य संग्रह
www.blogvani.com

Blog Archive

Text selection Lock by Hindi Blog Tips

about me

My photo
मुझे फूलों से प्यार है, तितलियों, रंगों, हरियाली और इन शॉर्ट उस सब से प्यार है जिसे हम प्रकृति कहते हैं।