Monday, March 28, 2011

हम अपरिभाषित

व्यक्तित्व से अस्तित्व तक की
देते रहे हम परिभाषा
बाँधते रहे उन्हें
कभी शब्दों से
कभी चुप्पियों में
कभी शब्द और सन्नाटे के अंतरालों में
किंतु स्वयं की न तो कभी दी परिभाषा
न बाँधना भाया किसी से
तो खुद अपरिभाषित
अपरिमित
निर्बंध रह गए।

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मुझे फूलों से प्यार है, तितलियों, रंगों, हरियाली और इन शॉर्ट उस सब से प्यार है जिसे हम प्रकृति कहते हैं।