Wednesday, August 4, 2010

निर्विकार

दुनिया
तब भी बिल्कुल वैसी थी,
जब मैं नहीं था,
व्यस्त, निर्विकार और तटस्थ, जैसी आज है- !
जब मैं हूँ।
दुनिया तब भी वैसी ही रही,
जब इस व्यस्त, निर्विकार, तटस्थ
दुनिया में मैं
डूब गया
मुझे आत्मसात कर लिया
गया कृष्ण विवर बनकर
और तब दुनिया तब भी वैसी ही रही
जब अपनी अस्तित्वहीनता के विरुद्ध
मोर्चा खड़ा कर मैंने चुनी
तनहाई और सोचा
छोड़ दी मैंने दुनिया।
दुनिया तब भी वैसी ही रही
दुनिया तब भी वैसी ही रहेगी,
जब मैं नहीं रहूँगा।

1 comment:

  1. एक बेहद उम्दा पोस्ट के लिए आपको बहुत बहुत बधाइयाँ और शुभकामनाएं !
    आपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है यहां भी आएं !

    ReplyDelete

मेरा काव्य संग्रह

मेरा काव्य संग्रह
www.blogvani.com

Blog Archive

Text selection Lock by Hindi Blog Tips

about me

My photo
मुझे फूलों से प्यार है, तितलियों, रंगों, हरियाली और इन शॉर्ट उस सब से प्यार है जिसे हम प्रकृति कहते हैं।