Saturday, July 10, 2010

वार्तालाप


हमेश
बहुत लंबी-चौड़ी, विस्तृत
मगर परिधि-सी तुम
मुझे घेरे रहती हो।
बहुत ऊँचे, विशाल,
 सीमाहीन आकाश से तुम
छाए रहते हो मुझ पर।
बहुत गंभीर, गहरी, रोचक
किताब-सी तुम
बसी रहती हो ज़हन में
बहुत स्वतंत्र, नटखट
 कविता की तरह
कल्पना-से तुम
 मँडराते रहते हो
 मेरे आस-पास

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मुझे फूलों से प्यार है, तितलियों, रंगों, हरियाली और इन शॉर्ट उस सब से प्यार है जिसे हम प्रकृति कहते हैं।