Saturday, March 13, 2010

चलो चल दें यहाँ से


सड़क के दोनो ओर से पेड़ कट गये
हरे-भरे शहर के जैसे पर कतर गये
वैसे भी मयस्सर नहीं थी ताजादम हवा
उस पर बुज़ुर्गों के भी साये हट गये
रातों को बहुत सब्जोहसीं हो गया मंजर
चौराहों पे नकली दरख्त बिजली से सज गये
कैसे कोई ढ़ूढ़ेगा तेरा पता शहर में
पुराने बरगद मोड़ोगलियों से कट गये
घबरा के अब कहीं जा भी नहीं सकते
गाँव भी सब शहरों से सट गये

No comments:

Post a Comment

मेरा काव्य संग्रह

मेरा काव्य संग्रह
www.blogvani.com

Blog Archive

Text selection Lock by Hindi Blog Tips

about me

My photo
मुझे फूलों से प्यार है, तितलियों, रंगों, हरियाली और इन शॉर्ट उस सब से प्यार है जिसे हम प्रकृति कहते हैं।