Monday, January 25, 2010

पाषाण नहीं हृदय मेरा

पाषाण नहीं हृदय है मेरा

पूजा नहीं इसे प्यार चाहिए
शासन करना नहीं चाहता
थोड़ा-सा अधिकार चाहिए
कब चाहा भर कर दे साक़ी
दुलार सहित पैमानों में
लेकिन जब मधुशाला जाऊँ
थोड़ी-सी मनुहार चाहिए
देना ही सीखा है अब तक
कुछ पाऊँ नहीं रही यह इच्छा
नेह मुझे भी है इच्छित
नहीं मगर व्यापार चाहिए
संघर्षों में बीता जीवन
दर्द की पहचान मुझे है
काँटे सह लूँ सीने पर
मन को कोमल व्यवहार चाहिए
गले में माला हो फूलों की
नहीं कभी यह स्वीकार मुझे
जब कोई सत्कार्य करूँ
तेरी बाँहों का हार चाहिए
कब मैंने चाहा तन तेरा
मन पर लेकिन अधिकार चाहिए
है तैयार मिटने को नीरव
थोड़ा-सा पर प्यार चाहिए


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मुझे फूलों से प्यार है, तितलियों, रंगों, हरियाली और इन शॉर्ट उस सब से प्यार है जिसे हम प्रकृति कहते हैं।