Tuesday, December 15, 2009

गोवा




उन्मुक्त,आधे चाँद की रात है
सुरीला सागर तट है
नारियल-वन की सौगात है
सागर सुनती तुम हो
हाथ में कापी-कलम
लहरों की दवात है
मैं नशे में हूँ यूँ ही
काजू-फेनी की क्या औकात है

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मेरा काव्य संग्रह

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मुझे फूलों से प्यार है, तितलियों, रंगों, हरियाली और इन शॉर्ट उस सब से प्यार है जिसे हम प्रकृति कहते हैं।