सिरहाने उगता है, पैताने डूब जाता है
सूरज के मुख्तसर से सफर में सब फ़ना हो जाता है
सूरज के मुख्तसर से सफर में सब फ़ना हो जाता है
जाने वो मेरे इर्द-गिर्द है, या मैं उसके
उसकी रोजमर्रा में, मेरा दिन ख़ाक हो जाता है
ख़्वाहिशें उगती है, उफ़क पे चाँद-तारों की तरह
सुबह होते ही सितारा डूब जाता है
कुछ हथेली पे था रेत की तरह
बंद करती हूँ मुट्ठी तो फिसल जाता है
चंद कोंपलों के बाद, सब बंजर जमीन की तरह
तेरा ख़याल दूर तक पसरा, सहरा हुआ जाता है
उसकी रोजमर्रा में, मेरा दिन ख़ाक हो जाता है
ख़्वाहिशें उगती है, उफ़क पे चाँद-तारों की तरह
सुबह होते ही सितारा डूब जाता है
कुछ हथेली पे था रेत की तरह
बंद करती हूँ मुट्ठी तो फिसल जाता है
चंद कोंपलों के बाद, सब बंजर जमीन की तरह
तेरा ख़याल दूर तक पसरा, सहरा हुआ जाता है
No comments:
Post a Comment