थोड़ी-सी
उदासी रूह को संवार-सजा देती है
सीली
हो अगरबत्ती,ज्यादा ख़ुशबू-धुआं देती है
सुख
ज्यादा हो छिन जाता है नींद-चैन
थोड़ी
तकलीफ़ ज़िन्दगी को मज़ा देती है
कौन
माँगता है तकदीर में ख़लिश-काँटे
पेशानी
की सिलवटें हर शै को सजा देती है
जरा-सा
नमक बढ़ा देता है लज्जत सबकी
दर्द
गोया हर मर्ज की दवा होती है
आग
गहरे में हो शख्स बन जाए कुन्दन
सतही
गर्मी तो बस मसखरा बना देती है
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