Sunday, November 10, 2013

दर्द गोया हर मर्ज की दवा होती है




थोड़ी-सी उदासी रूह को संवार-सजा देती है
सीली हो अगरबत्ती,ज्यादा ख़ुशबू-धुआं देती है

सुख ज्यादा हो छिन जाता है नींद-चैन
थोड़ी तकलीफ़ ज़िन्दगी को मज़ा देती है

कौन माँगता है तकदीर में ख़लिश-काँटे
पेशानी की सिलवटें हर शै को सजा देती है

जरा-सा नमक बढ़ा देता है लज्जत सबकी
दर्द गोया हर मर्ज की दवा होती है

आग गहरे में हो शख्स बन जाए कुन्दन
सतही गर्मी तो बस मसखरा बना देती है

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मुझे फूलों से प्यार है, तितलियों, रंगों, हरियाली और इन शॉर्ट उस सब से प्यार है जिसे हम प्रकृति कहते हैं।